लेखनी कहानी -02-Jul-2023... एक दूजे के वास्ते... (13)
सुबह के चार बजे ओर हम दिल्ली पहुंचे।
स्टेशन पर उतर कर मैंने रिषभ के नम्बर पर फोन किया।
उसकी रिंग जा रही थी पर कोई फोन उठा नहीं रहा था।
मैं बहुत घबरा गई। अंजान शहर में इस तरह कब तक खड़ी रहूँ.....।
बार बार फोन लगाने पर भी कोई फोन उठा नहीं रहा था.....।
मैंने तुरन्त अलका को मेसेज किया ओर उससे पुछा कि अब क्या करुं.....।
अलका ने मेसेज किया:- अरे मेरी जान करना क्या हैं....उस बुद्धु के इंतजार में खड़े रहने से तो बेहतर हैं....रिक्शा ले ओर उस पत्ते पर चली जा.....।
उसने विश्वास दिलाया कि वो भी हमारे पीछे पीछे दुसरी रिक्शा में आ जाएगी।
मैंने मेसेज में हां तो बोल दिया पर अंदर ही अंदर बहुत डर रही थीं......।
बार - बार रिषभ को इस उम्मीद में फोन लगा रही थी कि शायद उठा ले......।
बाबा जी से प्रार्थना भी कर रही थी कि प्लीज वो फोन उठा ले......। बार बार कोशिश करते - करते हम स्टेशन के बाहर आ चुके थे।
मम्मी इस बात के लिए भी मुझे ही दोषी ठहरा रही थी कि मेरे जैसी मनहूस होगी तो हर काम बिगड़ना ही हैं......।
मम्मी की बातों से मैं ओर भी परेशान हो गई.....।
फिर भी हिम्मत कि ओर बाहर आते ही रिक्शा को देख ही रही थी कि......रिषभ का फोन आया.......।
उसका फोन देखकर मेरी जान में जान आई।
बाबा जी को थैंक्स बोलते हुए उसका कॉल उठाया।।
हैलो.. .....
हैलो रश्मि जी......?
जी .......।
आई एम सो सॉरी.. मैं बस 10 मिनट में आ रहा हुं। प्लीज आप वैट किजिएगा.....।
ओके......हम स्टेशन के बाहर ही खड़े हैं.....।
ओके..... बस अभी आया मैं...।
इतना कहते ही रिषभ ने फोन रख दिया.....।
रश्मि मन ही मन बोली :- थैंक्यू बाबा जी.......उसका फोन आ गया......वरना मेरी तो डर के मारे हालत खराब हो रहीं थीं.......।
रश्मि ने तुरंत अलका को भी मेसेज करके बता दिया कि रिषभ आ रहा लेने.....।
अलका ने मेसेज किया:- ठीक है मैं पास ही हूँ। तुम जाओगे फिर तुम्हारे पीछे आ जाउंगी।
रश्मि ने फोन रख दिया रिषभ का इंतजार करने लगी......।
थोड़ी देर में रिषभ आया......।
रिषभ रश्मि को देखते ही जैसे कहीं खो गया हो वो कुछ पल उसको एकटक देखें जा रहा था फिर बोला.. :- आई एम सॉरी, मेरा फोन साइलेंट पर था, ओर मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि समय हो गया है.....।
रश्मि-इट्स ओके.....अभी चले.....!
रिषभ ने जल्दी से अपनी कार कि डिक्की में सामान रखा ओर पीछे का डोर खोल कर आंटी को बैठाया....। रश्मि भी बैठ रही थी तो रिषभ ने उसे रोका ओर कहा :- आप आगे आ जाइए.....
रश्मि ने मना कर दिया ओर वो पीछे बैठ गई।
रिषभ ड्राइविंग सीट पर गया ओर घर की ओर चल दिया, उसने आगे का मिरर ऐसे सेट किया जिससे वो रश्मि को देख सके, वो बार बार मिरर में से रश्मि को देखें जा रहा था....। रश्मि खिड़की पर अपनी कोहनी रखकर बाहर देख रही थी। हवा में उसके बाल बार बार उसके चेहरे पर आ रहें थे पर वो अपने ही ख्यालों में खोई हुई थी.....।
रिषभ लगातार उसे देखकर सोच रहा था...... यार ऊपरवाले ने क्या चीज़ बनाई हैं....। लगता हैं बहुत फुर्सत में होंगे..... एक एक अंग क्या खुबसुरती से निखारा हैं.....। रिषभ यू आर सो लकी..... ये खुबसूरत हसीना तेरे घर रहने वाली हैं....।
थोड़ी ही देर में वो घर पहुंचे।
रिषभ ने उतर कर डिक्की में से सामान निकाला ओर घर के भीतर चल दिया।
भीतर मोहन अंकल सोफे पर बैठे थे.....।
सबको देखते ही उठे ओर हाथ जोड़कर कहा..:- नमस्ते भाभी जी....। इसे अपना ही घर समझिएगा, किसी बात की टेंशन मत लिजीएगा.....।
नमस्ते भाई साहब.....। शुक्रिया.....।
मोहन रश्मि की ओर देखते हुए... :- बच्ची तो बढ़ी प्यारी हैं......।
रश्मि के सर पर हाथ रखते हुए.. :- मैं भी तुम्हारें पापा जैसा ही हूं.......किसी बात की फिक्र मत करना.....। जाओ अभी थोड़ी देर आराम कर लो, मैं तुम्हारे लिए खाने को कुछ भिजवाता हूँ।
रश्मि ने उनका शुक्रिया अदा किया.....:- थैंक्यु अंकल।
मोहन रिषभ से :- बेटा इनका सामान इनके कमरे में रखकर आओ, ओर बल्लु से कहकर खाने का भी इंतजाम कर दो।
रिषभ उनका सामान ले जाने लगा.....।
आंटी आप इस तरफ आइये.....। रिषभ नीचे होल की तरफ़ बने एक कमरे में उनको ले जाते हुए बोला....।
नीचे वाला कमरा आंटी जी के लिए है, ओर आपका कमरा ऊपर हैं। रिषभ ने सामान रखते हुए कहा।
ऊपर......लेकिन अलग कमरे कि क्या जरूरत है ये कमरा ही इतना बड़ा है, बैड भी इतना बड़ा हैं......मैं यही साथ में रह लेती हूँ.....।
इतना सुनकर रश्मि कि माँ बोली :- मुझे तुझ मनहूस के साथ नहीं रहना। मुझे तेरी सूरत से भी नफरत है। ये तो मेरी मजबुरी है जो मैं तेरे साथ यहां आई। बेटा इसको ले जाओ यहाँ से ताकि मैं चैन की सांस ले सकूँ.....।
रश्मि ये सब सुनकर रिषभ से बोली :- चलिए ऊपर मेरा कमरा दिखाईये....।
रिषभ ने हां में सर हिलाया ओर ऊपर कमरे में आया....।
एक कमरें का डोर खोल कर कहा:- ये आपका कमरा हैं रश्मि जी.......ओर आपके पास वाला मेरा.....।
आपको कभी भी किसी भी चीज़ की जरूरत हो तो बिंदास मेरे रुम में आ जाना.....।
रश्मि ने हां बोला ओर थैंक्स कहते हुए अपने कमरे में आ गई।
रिषभ उसका सामान रखकर वहां से चला गया......।
रिषभ के जातें ही उसने अलका को फोन किया।
हैलो......।
अलका कहां हैं तु....?
तेरे दिल में......।
मजाक मत कर ओर बता कौनसी जगह रूकी हैं तु...... !
अलका हंसते हुए.. :- क्या यार, तुने ये सही नहीं किया, मैं तो आज तक येही समझ रही थी कि मैं तेरे दिल में हुं, ओर तुझे तो ये मजाक लग रहा हैं.....।
अलका प्लीज तु..
अलका उसकी बात काटते हुए बोली...:- गुस्सा मत कर मेरी जान......। तेरे अंकल के घर के ठीक सामने एक गेस्ट हाउस है, वही हूँ......। यहाँ से स्टेशन बहुत नजदीक है, इसलिए यहां बहुत होटलस ओर गेस्ट हाउस हैं.....। मैंने भी तीन चार देखे। फिर ये सब से नजदीक ओर सामने वाला ले लिया। अभी तु आराम कर ओर जब भी हास्पिटल जाना हो फोन कर देना.....।
रश्मि-ओके। तु ध्यान रखना अपना। बाय।
तभी किसी ने रश्मि का दरवाजा खटखटाया।
रश्मि ने फोन रखा ओर दरवाजा खोला तो रिषभ एक ट्रे में काफी के दो मग ओर बिस्किट लेकर खड़ा था....।
दरवाजा खुलते ही रिषभ अंदर आया ओर ट्रे टेबल पर रखी ओर सोफे पर बैठते हुए बोला :- आइये रश्मि जी इस घर में पहली काफी मेरे साथ पिजीए...।
रश्मि ने मुस्कुराते हुए पुछा..:- रिषभ जी.....वो....मम्मी को..
रिषभ उसकी बात काटते हुए बोला.. :- आंटी ने चाय बोली थी वो उनको भिजवा दी.....।
अभी आप अपनी काफी लिजीए वरना ठंडी हो जाएगी।
रश्मि ने काफी ली और बैड पर जाने लगी.....।
रिषभ अरे यहां बैठिये ना......सोफे पर....। आईए......।
रश्मि सोफे पर आकर बैठ गई......।
रिषभ सीप लेते हुए भी उसको देखे ही जा रहा था.....।
फिर बोला.. :- आपसे एक बात पुछुं रश्मि जी....!
रश्मि ने हां में सिर हिलाया........हम्मम पुछिए.....।
आपकी मम्मी आपसे ऐसे क्युं बात करती हैं......?
अरे कुछ नहीं वो बस बिमारी की वजह से थोड़ी चिड़चिड़ी हो गई हैं.......ओर फिर सफर की भी थकान थी। वैसे तो मुझसे बहुत प्यार करती हैं.......।
ओहह.....ऐसा हैं.....। ठीक हैं अभी मैं चलता हूँ आप थोड़ी देर आराम किजिए.......बाय।
इतना कहकर रिषभ वहां से चला गया ओर रश्मि भी बैड पर आकर सो गई.....।